आचरण का मूल आधार शिक्षा
हमारी मनोवृत्ति का निर्माण हमारे जीवन, हमारे आचरण के अनुरूप ही होता है। हमारे जीवन तथा आचरण का मूल आधार शिक्षा है अगर शिक्षा स्पष्ट सरल सुंदर है तो हमारा व्यक्तित्व विकासशील है परंतु अब शिक्षा का उद्देश्य मात्र शिक्षित करना नहीं धनोपार्जन हो गया है|
हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति को सात आततायी या शत्रु बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। मस्तिष्क, दण्ड, परीक्षा, कुरूप भवन, अत्यधिक कार्य, स्वाभिमान रहित अध्यापक तथा संकुचित मनोवृत्ति के माता-पिता। बेचारे विद्यार्थी को इतनी अधिक पुस्तकें पढ़नी पड़ती हैं, इतने प्रकार के विषयों का अध्ययन करना पड़ता है कि उनका दिमाग, शरीर और मन सब कुछ बुरी तरह से पिस जाता है। भाँति-भाँति के दण्ड और हर समय प्रस्तुत परीक्षाओं का भय उसे खाये जाता है। सिवाय पढ़ने और पढ़कर परीक्षा पास करने के वह कुछ और सोच ही नहीं सकता। गन्दे और तंग मकानों में गन्दे टाटों या गन्दी और भद्दी मेज-कुर्सियों पर बैठकर उसे पढ़ना पड़ता है, अतः उसके लिए स्वच्छ वायुमण्डल एक दुर्लभ पदार्थ है। स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर विद्यार्थी को केवल इसलिए पढ़ाते हैं कि उसकी नौकरी बनी रहे, उसके भले-बुरे से उन्हें कोई मतलब नहीं। वे हमेशा अपने ट्यूशन की चिन्ता में लगे रहते हैं और धन कमाने के लालच में अपने स्वाभिमान, गुरुत्व और शिक्षक पदवी के महत्व को गंवा बैठते हैं। विद्यालय के बाहर घर पर भी विद्यार्थी का यही हाल रहता है?घर पर वह जब तक कम से कम चार घण्टे नित्य नियमपूर्वक न पढ़ें, तब तक अध्यापक द्वारा बताया घर पर किया जाने वाला काम पूरा नहीं होता और फिर इन सबके ऊपर है उस पर सवारा नौकरी का भूत। बालक को दिन-रात किताबों से चिपके देखकर माता-पिता को पूरा विश्वास हो जाता है कि उनकी साधना तथा बच्चे की तपस्या दोनों ही सफल है। बड़ा होने पर उसे अवश्य ही कोई अच्छी नौकरी मिल जायेगी। अच्छी नौकरी पाना ही जब सब प्रकार से जीवन का उद्देश्य हो जाय तो मानसिक विकास का प्रश्न ही कहाँ रहा? आजकल तो विद्या और नौकरी पर्यायवाची शब्द बन गये हैं। ऐसी हालत में प्रत्येक मनुष्य स्वार्थ-साधन में तल्लीन रहेगा, इसके सिवाय उससे और किस बात की आशा की जा सकती है? ऐसा व्यक्ति समाज के कल्याण की ओर क्या ध्यान दे सकता है|
विश्व विद्यालय उच्च शिक्षा केंद्रों का कार्य विद्यार्थियों को शिक्षित करना व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त कराना होता है पर इन विद्या सदन का काम सिर्फ धनोपार्जन हो चुका है| अब चाहे विद्यालय हो या विश्वविद्यालय इन सब की सुविधा शुल्क आसमान को छूती है जिससे कहीं ना कहीं मध्यम वर्गीय निम्नवर्गीय परिवार अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने में असमर्थ रहते हैं चाहे शिक्षा तकनीकी की हो मेडिकल की हो या फिर किसी विशेष कोर्स की इन सभी की फीस आसमान को देखती नजर आती है|
ऐसे में अभिभावक अपने बच्चों के सपनों को कैसे पूरा करें|हर जगह शिक्षा प्रसार की नई-नई योजनाएं बन रही हैं। हमारी राष्ट्रीय सरकार इस बात की घोषणा कर चुकी है कि वह शीघ्र ही देश से निरक्षरता को मिटा देगी। परन्तु विचार यह करना है कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली कैसी है और वह किस प्रकार के जीवन का निर्माण कर रही है तथा हमारी शिक्षा वास्तव में कैसी होनी चाहिए।
पारस पाठक