दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में पुलिस एवं अधिकारियों के मध्य जो अशोभनीय घटना हुई उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है । क्योंकि एक तरफ तो कानून के रखवाले तो दूसरी ओर कानून तोड़ने वालों को सजा दिलाने वाली इस घटना से दोनों पक्षों का सम्मान सवालों के घेरे में है ।
समाज में दोनों वर्गों के लिए ऐसी आपत्तिजनक टिप्पणियां की जा रही हैं । जो चिंता के साथ दुख भी कर रही हैं, आजादी की लड़ाई में हमारे अधिवक्ताओं की अहम भूमिका रही है । इस घटना के बाद से देशभर से अधिवक्ताओं द्वारा किए जा रहे कृत ने उस सम्मान को ठेस पहुंचाने का काम किया है । मैं बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों से सिफारिश (गुजारिश) करता हूं कि वह घटना की तह में जाएं और पता लगाने के लिए जो भी दोषी हो उन्हें कानून के कटघरे में खड़ा करें ना कि कानून हाथ में लेकर धज्जियां उड़ाए । दूसरों को कानून का पाठ पढ़ाने वाले खुद कानून की अवहेलना पर उतारू हैं । क्योंकि इससे तो देश का प्रबुद्ध वर्ग अराजकता फैलाने वालों के रिमार्क से अपने को बचा नहीं सकता है । दूसरी ओर जो पुलिस है अंग्रेजों की पुलिस नहीं है । देश में अमन चैन शांति बनाए रखने के लिए । हमारे ही परिवार के सदस्य हैं इसलिए इनकी वर्दी का सम्मान होना ही चाहिए ।