यह बात सही है कि अब भारत में स्वच्छ और निर्मल राजनीति का सपना साकार होना मुश्किल लग रहा है । सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्शन कमिशन को राजनीति में अपराधीकरण को समाप्त करने को कहा है ।
राजनीतिक अपराधियों को शरण दे रहे हैं और स्वयं अपराधों में लिप्त हो रहे हैं । उससे तो यही प्रतीत होता है अब राजनीति में अपराधियों की भरमार से नैतिकता की बात करना बेईमानी है यह कहना कि तमाम नेताओं द्वारा अपराधिक रिकार्ड देने मात्र से समस्या हल नहीं हो सकती है इसके लिए आगे भी जाना होगा कमीशन ने सुझाव दिया है ।कि ऐसे अपराधिक रिकॉर्ड वाले को टिकट से वंचित किया जाए । सबसे ज्यादा अपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद भाजपा में हैं । इसके बाद कांग्रेश और अन्य दलों के राजनीतिक आते हैं । एक बात ध्यान देने योग्य है कि अगर यही स्थिति रही तो राजनीति में नैतिकता और सौहार्द की बात कहां आएगी और आज इसी स्थिति की बलिहारी है कि लोग नेताओं की बात पर विश्वास नहीं करते हैं । राजनीति में अपराधियों का बोलबाला है जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली मैं बहुत बड़ा अंतर आया है समय की मांग को ध्यान में रखते हुए राजनेताओं ने संविधान में तमाम बार संशोधन कर ध्वनि मत से विधानसभा राज्यसभा एवं लोक सभा ओं में श्याम जनप्रतिनिधियों ने बेरोकटोक के अपना मानदेय 1960 तथा 1970 के समय और वर्तमान के समय में यदि देखा जाए तो राज नेताओं ने 1000 गुणा अपनी मानदेय में बढ़ोतरी कर ली है । अफसरशाही एवं जनप्रतिनिधियों के अनाप-शनाप खर्चे के कारण देश आर्थिक संकट की ओर कदम रख रहा है ।
बृजेश पाठक पत्रकार
मध्यप्रदेश शासन जिला अधिमान
शिवपुरी मध्य प्रदेश