दूषित भाषा का प्रयोग होता राजनीति में दुर्भावना से क्या ?

वर्तमान परिवेश में राजनीति मैं आजकल भाषा की गरिमा से किसी पर कुठाराघात करना एक परंपरा बन गई है । मतदाता अपना अमूल्य समय एवं मतदान करके जनप्रतिनिधियों को लोकसभा या विधानसभा में भेजता है वही लोग भाषा की गरिमा को दूषित कर रहे हैं । ऐसे में पूरे देश के लोगों की विश्व में क्या छवि होगी । यह सोचना होगा । जब से देश में मोदी की सरकार बनी है  । तो कांग्रेश और अन्य पार्टियों को फूटी आंखों से नहीं सुहाती है । खासतौर पर कांग्रेश के पूर्व अध्यक्ष ने भाषा की गरिमा को तिलांजलि दे दी है , वैसे उन्हें संबंधों की गरिमा का भी ध्यान नहीं है । माताजी को माता ना कहकर पिता की पत्नी कहने से अन्य संबंधों का ज्ञान नहीं है । प्रधानमंत्री को आप नरेंद्र मोदी कहकर अपने आदर्श को कुंठित नहीं कर रहे हैं क्या ? जनता उसे क्या सम्मान देगी जो दूसरों को सम्मान नहीं देता है । अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा की बोली जगजाहिर है । जो राजनीति में भूचाल मचाए हैं । इस तरह की भाषा से देश की जनता क्या अपने जनप्रतिनिधियों को आदर और सम्मान के भाव से देखेगी । जहां एक और पूरा विश्व भारत को एक समृद्ध साली राष्ट्र मोदी के नेतृत्व में मान रहा है , वही हमारे देश के कुछ तथाकथित दुर्भावना से अनाप-शनाप बोलते जा रहे हैं ।