देश को भारी कीमत चुकाना पड़ रही सी ए ए के दुष्प्रचार की

         देश भारी कीमत चुकता  सीएए के दुष्प्रचार की


   सीएए पर विपक्ष ने लोगों को भड़काया और गुमराह किया


         बृजेश पाठक जिला अधिमान पत्रकार , शिवपुरी


        भारत का मन इन दिनों व्यथित है । संप्रदायिकता के राक्षस ने राष्ट्रीय एकता को पलीता लगाया है । दिल्ली दंगों का यथार्थ डरावना है। नागरता संशोधन कानून बनाने के बाद से उसके विरोध  को लेकर जो ओछी राजनीति शुरु हुई ।


 किसी भारतीय नागरिक से कोई लेना देना नहीं । नागरता संसोधन कानून यानी सीएए  का । फिर भी उसका ही दुखद और भयावह परिणाम ।


           दिल्ली में सीएए को लेकर बीते 2 महीने से तनाव चल रहा था । इस तनाव की जड़ में शाहीन बाग में सड़क पर कब्जा करके दुष्प्रचार किया जा रहा था ।


             इस माहौल को बनाने के लिए जमकर भ्रांतियां फैलाई गई । इसी दुष्प्रचार ने लोगों के मन में जहर घोलने का काम किया और इस जहर ने दिल्ली में दंगे भड़काने का कार्य किया । यह भीषण दंगे देश को विखंडन करने की साजिश की ओर अंकित करते हैं और  भीषण दंगे उस समय हुए जब दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति दिल्ली में थे और इस कारण दुनिया की निगाहें भारत की ओर थी । ऐसा समझा जा सकता है कि दंगे कराने का मकसद भारत को बदनाम करने का था । यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति को यह समझाने में सफल रहे कि वह भारत का आंतरिक मसला है । और सीएए से किसी की धार्मिक स्वतंत्रता का कोई हनन नहीं हो रहा । यह कारण रहा कि जब अमरीकी राष्ट्रपति से इस कानून के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने उसे भारत का आंतरिक मामला बताया । इसी के साथ धार्मिक स्वतंत्रता पर उन्होंने कहा कि भारत का रिकॉर्ड दुनिया के तमाम देशों से बेहतर है ।


           हमारे देश के विपक्षी राजनेताओं ने जो हथकंडा अपनाया सी ए ए नागरिकता संशोधन कानून को लेकर वह विपक्ष की ओछी मानसिकता को  प्रदर्शित करता है । विपक्ष ने गत 6 वर्ष से कभी भी विकास की योजनाओं को लेकर इतनी तत्परता नहीं दिखाई । जितनी  नागरिकता संशोधन  बिल को लेकर ।  हंगामा  खड़ा करने में। इस नागरिकता संशोधन बिल  के संदर्भ में  जबकि हमारे देश के  नवयुवक  एवं  शहर  ग्राम  के सभी हिंदुस्तान वासी ओं ने देश की सुरक्षा के संदर्भ में इस बिल को अच्छा माना  हैं ।


               हर परिवार के मुखिया का दायित्व रहता है कि  परिवार का   सर्वागीण विकास हो। इस संदर्भ में योजनाएं बनाएं और इन योजनाओं से निशाह गरीब प्राणी मात्र की सेवा भी की जा सके । यह कार्य हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया हम इस कार्य की भूर भूर प्रशंसा भी करते हैं ।


      विपक्ष के मार्गदर्शन में 80 दिनों से महिलाएं धरने पर बैठी हैं , कहने को यह महिलाओं का धरना है । लेकिन इसे कई राजनीतिक दलों और संगठनों का समर्थन प्राप्त है ।सड़क पर कब्जे के बावजूद धरना देने वाले यातायात बंद करने को जायज बता रहे हैं । यह एक कुतर्क ही है । क्योंकि कोई भी कानून सड़क पर कब्जा कर प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं देता । क्योंकि इस धरने से लोग परेशान हो रहे हैं । इसलिए  नाराजगी भी है । इसका कारण लोगों का आवागमन सुगम और सरल  तरीके से नहीं हो पा रहा । मार्ग प्रतिबंधित है ।


           दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान शाहीन बाग का धरना एक बड़ा मुद्दा बना । भाजपा ने इस धरने को जोर शोर से उछाला लेकिन उसे इसका कोई खास चुनावी लाभ नहीं मिला । माना जा रहा था कि चुनाव बाद यह धरना खत्म हो जाएगा । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । उल्टे कुछ और स्थानों पर सड़क पर कब्जा कर धरना देने की कोशिश की गई । जब इसका विरोध हुआ तो तनाव बढ़ा और फिर इसी तनाव ने दंगों का रूप ले लिया । इन दंगे में 43 से अधिक लोग मारे गए और अरबों रुपए की संपत्ति को जलाया गया । जान माल के इस व्यापक नुकसान के कारण स्वाभाविक तौर पर दिल्ली पुलिस  निशाने पर है । सवाल है ? कि आखिर पुलिस यह क्यों नहीं भांप सकी कि दिल्ली में हिंसा भड़कने की तैयारी चल रही है।  यह भीषण दंगे यही बात बता रहे हैं , कि हिंसा के लिए अच्छी खासी तैयारी की गई थी ।


 इस तैयारी की भनक न लग पाना दिल्ली पुलिस एवं दिल्ली सरकार की एक बड़ी नाकामी है । लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि शाहीन बाग के इस धरने ने दिल्ली में तनाव बढ़ाया । उसे खत्म करने का काम सुप्रीम कोर्ट भी नहीं कर सका । सुप्रीम कोर्ट ने यह तो कहा कि इस तरह रास्ता रोककर धरना देना सही नहीं लेकिन वह उसे खत्म करने का आदेश नहीं दे सका । उसने धरना देने वालों से बात करने के लिए वार्ताकार नियुक्त कर दिए इससे  एक तरह से अराजकता को प्रोत्साहन मिला । 


              यह किसी से छुपा नहीं विपक्षी राजनीतिक दलों के मार्गदर्शन में 80 दिनों से महिलाएं धरने प्रदर्शन पर बैठी है । कहने को यह महिलाओं का धरना है । लेकिन इस अराजकता पूर्ण प्रदर्शन धरने को कई राजनीतिक दलों और संगठनों का समर्थन प्राप्त हे । सड़क पर कब्जे के बावजूद धरना देने वाले यातायात बंद करने को जायज बता रहे हैं ।यह एक कुतर्क ही है ।


            इससे इंकार नहीं की भड़काऊ भाषण समस्या बने लेकिन सबसे गंभीर समस्या तो मुस्लिम समाज का इस दुष्प्रचार पर भरोसा करना है की सी ए ए उनके खिलाफ है दंगों के बाद दिल्ली पुलिस के साथ केंद्र सरकार भी विपक्षी दलों के निशाने पर है मोदी सरकार की निंदा आलोचना विपक्ष का अधिकार है । लेकिन क्या यह वही विपक्ष नहीं जिसने सी ए ए पर लोगों को भड़काया और गुमराह किया । सीए ए तो उसी भावना के अनुकूल है । जो कभी कांग्रेश ने प्रकट की थी ।  लेकिन उसके खिलाफ आग उगलने में कांग्रेश नेता  अब उस एनपीआर का भी विरोध कर रहे हैं जो एक सामान्य प्रक्रिया है और जिस पर अमल उसी के शासनकाल में हुआ था ।


          मुस्लिम समाज को इस पर विचार करना ही होगा कि उनका हित और देश का हित अलग अलग नहीं हो सकता आखिर जो कानून देश के हित में है वह मुसलमान अथवा अन्य किसी समुदाय के खिलाफ कैसे हो सकता है ?


 ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ए मान रही थी कि समय के साथ-साथ सीए का विरोध बंद हो जाएगा लेकिन दिल्ली दंगे यही रेखांकित कर रहे हैं कि सीए का अराजक पूर्व विरोध किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है मोदी सरकार को यह देखना होगा कि दिल्ली दंगों ने इस धारणा इस धारणा को तोड़ दिया कि उसके अब तक के कार्यकाल में देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ सीए ए विरोध के बहाने जो माहौल बनाया जा रहा है ।उसकी काट करनी ही होगी । इसी के साथ दिल्ली दंगे के दोषियों को बेनकाब कर दंडित भी करना होगा । इससे से ही अराजक तत्वों को सबक मिलेगा । हिंसा फैलाने वाले तत्वों से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए इसलिए और भी क्योंकि दिल्ली दंगों ने जान-माल को ही नुकसान नहीं पहुंचाया बल्कि देश की छवि को भी खराब किया है ।


                   केंद्र सरकार ने समय रहते पूर्व में नागरिकता संशोधन बिल के संदर्भ में जोर शोर से प्रचार प्रसार पर ध्यान नहीं दिया । जबकि विपक्षी राजनीतिक दलों ने अपनी ओछी मानसिकता के चलते एक मुस्लिम वर्ग को उकसाने का जो कार्य किया उसी का परिणाम आज देश के सामने आया है । इससे देश में एक अराजकता का माहौल बना है ।


            यह सत्य है विपक्षी राजनीतिक दलों को आगामी समय में इस माहौल का कोई फायदा नहीं मिलने वाला है । बल्कि देश की जनता यह जान चुकी है की राजनीतिक दल अपनी कुर्सी की खातिर क्या क्या नहीं कर सकते । दिल्ली की जनता ने विपक्षी राजनीतिक दलों को अच्छा सबक सिखाया है । इन राजनीतिक दलों को शर्म आना चाहिए की 97% विपक्षी दलों के उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके इसका क्या कारण है ।  विपक्षी राजनीतिक दल यानी कांग्रेश, बसपा, सपा को अपने (गले वान) में झांकना चाहिए और इस पर मनन भी करना चाहिए आखिर हम में क्या कमी की है ।