* बृजेश पाठक प्रधान संपादक *
कोरोनावायरस के संक्रमण से उप जी कोविड-19 बीमारी ने भारतीय समाज के सामने एक बड़ा संकट पैदा कर दिया है । यह संकट है, भारत के बड़े शहरों के प्रवासी श्रमिकों एवं तिहारी मजदूरों की एक बड़ी संख्या का पुनः विस्थापन इसलिए कि एक बार तो अपने गांव घर से विस्थापित होकर रोजी-रोटी की तलाश में महानगरों में आए । ऐसे में रोजी रोटी की बर्बादी एवं कोरोनावायरस का भय, दोनों मिलकर उन्हें पलायन के लिए बाध्य कर रहे । भारत में अब तक लगभग 31% शहरीकरण हुआ है । यह इन्हीं के खून पसीने से संभव हुआ ।
कंपनियों की कैंटीनों को खोलने की कवायद केंद्र एवं राज्य सरकार को करना चाहिए, ताकि गरीब मजदूर की व्यवस्था हो और वह उसी के आसपास रहकर लॉकडाउन का समय काटे ।
भारत के 16 राज्यों के 331 शहरों में इन दिनों विश्व व्याप्त महामारी कोरोनावायरस से संपूर्ण लॉकडाउन है। भारतवर्ष में 4000 की करीब पॉजिटिव पाए गए हैं । 85 लोगों की मौतें भी हो चुकी है। 300 के लगभग लोगों ने कोरोनावायरस की जंग जीत ली है । जो भारत के लिए गर्व की बात है। विश्व में देखा जाए तो कोरोनावायरस ने तबाही मचा दी है ।
हमें अपने देश के प्रधानमंत्री पर गर्व है जिन्होंने देश की जनता की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास किए हैं जिनी का परिणाम है कि आज कोरोनावायरस वायरस को रोकने में कामयाब दिखाई दे रही हैं ।
इसके साथ ही बस, ट्रेन और हवाई यातायात भी बंद है। सरकार का तर्क है कि इससे संक्रमण फैलने की दर में कमी आएगी और संक्रमण को नियंत्रित करने में शतप्रतिशत कामयाबी मिलेगी। लेकिन मुंबई जैसे अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहले 2-3 दिन जांच में ढिलाई बरती गई। वहां तैनात डॉक्टरों का कहना था कि स्टांपिंग करके यात्रियों को निजी गाड़ियों या टैक्सी से जाने की दी गई सलाह से महाराष्ट्र में वायरस फैला। जो कैटिगरी बनाई भी गईं, उसमें सावधानियां बरतने के बजाय उसे हल्के में लिया गया। सरकार ने ठोस रणनीति, नियोजन और आबादी की आवश्यकता का कोई अध्ययन नहीं किया।
सरकार ने सिर्फ और सिर्फ लॉकडाउन का आननफानन में जो निर्णय लिया, वह कोरोना को रोकने में अभी तक कारगर साबित होता दिखाई नहीं दे रहा है, उलटे इससे अनेक जटिल समस्याएं पैदा हुई हैं। जैसे ही लोग डाउन की घोषणा हुई और करीब करीब सारे कल कारखाने बंद होने लगे तो तमाम लोगों ने अपने घरेलू सहायकों को काम पर आने के लिए मना कर दिया कहीं पर घरेलू सहायक काम पर जाने में असमर्थ हो गए ऐसे में उनके पास शहर में रहने के लिए संसाधन या तो बिल्कुल सीमित हो गए या फिर नाम मात्र के ही रह गए यही स्थिति त्यारी मजदूरों और अन्य कामगारों की बनी और प्रवासियों का पलायन होने लगा। मुंबई अहमदाबाद इंदौर दिल्ली जैसे महानगरों से हजारों लोगों ने पहले ट्रेन और बस से अपने अपने गांवों की ओर पलायन किया। जब ट्रेनें और बसें बंद हो गईं तो वे पैदल ही अपने-अपने गांवों को निकल पड़े। वहीं जरूरत की चीजों की भीषण कालाबाजारी भी शुरू हुई।
सरकार ने सिर्फ और सिर्फ लॉकडाउन का आननफानन में जो निर्णय लिया, वह कोरोना को रोकने में अभी तक कारगर साबित होता दिखाई नहीं दे रहा है, उलटे इससे अनेक जटिल समस्याएं पैदा हुई हैं। जैसे ही लोग डाउन की घोषणा हुई और करीब करीब सारे कल कारखाने बंद होने लगे तो तमाम लोगों ने अपने घरेलू सहायकों को काम पर आने के लिए मना कर दिया कहीं पर घरेलू सहायक काम पर जाने में असमर्थ हो गए ऐसे में उनके पास शहर में रहने के लिए संसाधन या तो बिल्कुल सीमित हो गए या फिर नाम मात्र के ही रह गए यही स्थिति त्यारी मजदूरों और अन्य कामगारों की बनी और प्रवासियों का पलायन होने लगा। मुंबई अहमदाबाद इंदौर दिल्ली जैसे महानगरों से हजारों लोगों ने पहले ट्रेन और बस से अपने अपने गांवों की ओर पलायन किया। जब ट्रेनें और बसें बंद हो गईं तो वे पैदल ही अपने-अपने गांवों को निकल पड़े। वहीं जरूरत की चीजों की भीषण कालाबाजारी भी शुरू हुई।
लॉकडाउन के पहले ही अगर सरकार राशन, दवा और अन्य जरूरी चीजों की उपलब्धता का समुचित इंतजाम करती तो शायद लोगों के मन में वह अविश्वास और खौफ न होता, जो अभी है।
इसी लॉकडाउन में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल का अभाव भी खुलकर दिख रहा है। केंद्र सरकार की ओर से अगर प्रधानमंत्री को छोड़ दिया जाए तो खाद्यान्न मंत्री से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तक किसी का कोई अधिकृत सार्वजनिक बयान सामने नहीं आया।
इसी लॉकडाउन में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल का अभाव भी खुलकर दिख रहा है। केंद्र सरकार की ओर से अगर प्रधानमंत्री को छोड़ दिया जाए तो खाद्यान्न मंत्री से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तक किसी का कोई अधिकृत सार्वजनिक बयान सामने नहीं आया।
लॉक डाउन में गृह मंत्रालय की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है जब मामला बिगड़ा तब वे अपने-अपने स्तर से जुट तो गए, लेकिन समय निकल चुका था। लेकिन गृह मंत्री भी इससे दूरी बरतते दिखे। लॉकडाउन से पहले व्यवस्थाओं को लेकर उन्हें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिवों से बात करनी थी, लेकिन गृह मंत्री अमित शाह ने मामला बिगड़ने के बाद 28 मार्च को मुख्यमंत्रियों से संवाद स्थापित किया । कि वे प्रवासी मजदूरों को तत्काल मदद सुनिश्चित करें। हालांकि स्थिति पर अब भी काबू पा सकते हैं। हर राज्य की सीमाओं पर हजारों लोगों की भीड़ है। इन्हें प्रवेश देने से पहले इनकी पूरी जांच किए जाने की जरूरत है। जिन राज्यों में खाद्यसामग्री की आवश्यकता है, उन्हें तत्काल राहत देने के लिए युद्धस्तर पर काम करना चाहिए। सरकार को निजी कंपनियों एवं छोटे व्यवसायों की कैंटीनों को खोलने की कवायद करनी चाहिए, ताकि बाहरी खाने पर निर्भर गरीब मजदूर की व्यवस्था हो और वह उसी के आसपास रहकर लॉकडाउन काटे। महाराष्ट्र जैसे राज्य में 19 मार्च को सरकारी राशन देने के लिए अध्यादेश तो जारी हुआ, लेकिन अब तक किसी भी नागरिक को राशन नहीं मिला है।
केंद्र सरकार महिला जनधन खाता धारकों के खातों में पैसे जमा के लिए तथा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के खातों मैं पैसा जमा की शीघ्र करना चाहिए लॉक डाउन के दौरान रकार को लोगों को दुकानों पर बुलाने के बजाय एनजीओ, क्षेत्रीय कार्यकर्ता और पुलिस की मदद से घरों तक राशन, दवाईयां और अन्य चीजों को पहुंचाने के लिए पहल करनी चाहिए, ताकि लोग खाद्य सामग्री के नाम पर घर के बाहर न आएं। सरकार को बड़े पैमाने पर क्वारंटाइन के लिए बिस्तरों की उपलब्धता पर भी जोर देना चाहिए। डॉक्टरों और नर्सों को भी सुरक्षा कवच पहनाने की अत्यधिक आवश्यकता है, ताकि वे कोरोना से बचे रह सकें।
हर भारतीय एवं विदेशों से भारत आए हर मानव व्यक्ति का दायित्व बनता है । की सरकार के कार्य में सहयोग प्रदान करें और यह सहयोग तो स्वयं के लिएअति आवश्यक है । इसलिए हर व्यक्ति को मेडिकल जांच अवश्य कराना चाहिए ।
महाराष्ट्र में एक बार पुनः बाल ठाकरे के पद चिन्हों पर चलते हुए । उद्धव ठाकरे ने खुद कमान संभाली और सैकड़ों राहत शिविर खोलकर प्रवासी भारतीयों के रहने-खाने की व्यवस्था की है ।, जिससे भुखमरी से मरने की आशंका पर विराम लग गया है। इसके अलावा सरकार को हर हाल में होम डिलेवरी चेन एक्टिव करनी ही होगी, ताकि लोग घर पर ही रहें और सुरक्षित रहें।
लॉकडाउन के दुष्प्रभाव और चुनौतियों का जायजा सरकारी स्तर पर नहीं लेने से पलायन और खौफ का मंजर है। सरकार को आम लोगों को आवश्यक सुविधाओं की आपूर्ति पर जोर देना चाहिए। इसके बाद भी अगर कोई लॉकडाउन का उल्लंघन करता है तो कानून अपना काम जरूर करे।
लॉकडाउन के दुष्प्रभाव और चुनौतियों का जायजा सरकारी स्तर पर नहीं लेने से पलायन और खौफ का मंजर है। सरकार को आम लोगों को आवश्यक सुविधाओं की आपूर्ति पर जोर देना चाहिए। इसके बाद भी अगर कोई लॉकडाउन का उल्लंघन करता है तो कानून अपना काम जरूर करे।
यह वक्त सिर्फ अपने को बचाने का ही नहीं बल्कि अपनी संवेदना को भी बचाने का है संवेदना उनके प्रति जो हमारे लिए नगर जनों के लिए तमाम सुख सुविधाओं एवं जरूरतों के समाधान या तो बनाते हैं या उपलब्ध कराते हैं शायद हमारी यही संवेदना उन्हें उन्हें महानगर छोड़ अपने गृह क्षेत्रों की ओर पलायन करने से रोक सकती है हमारे समाज के ऐसे लोग हैं जो आज प्रवास एवं गृह क्षेत्र दोनों ही जगहों पर बेगाने से होते जा रहे हैं ऐसा नहीं होने दिया जाना चाहिए हमें अपने संवाद सहयोग सरकार आधारित भारतीय जीवन को बचाते हुए शहरी मजदूरों और कामगारों के प्रति संवेदनशील होना होगा यही वक्त के साथ-साथ इंसानियत की भी मांग है ।
" बृजेश पाठक "प्रधान संपादक"
आजाद समाचार संकेत करैरा शिवपुरी प्रदेश