प्रेस की स्वतंत्रता मुबारक हो




3 मई प्रेस की स्वतंत्रता का दिन है यह उन पत्रकारों के लिए भी याद करने का दिन है जिन्होंने राष्ट्र को बदलने एवं जनतंत्र को खोजने में अपना जीवन खो दिया भारत में पत्रकारिता की शुरुआत 29 जनवरी 1780 मैं हुई जब प्रथम मुद्रित अंग्रेजी समाचार बंगाल गजट का प्रकाशन प्रारंभ हुआ इसका काम था अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाना जिसके चलते यह अखबार अंग्रेजी हुकूमत द्वारा बंद करा दिया गया।

 

 उस समय से लेकर आज तक भारत में पत्रकारिता पर प्रहार होता रहा है बात करते हैं मौजूदा समय में पत्रकारिता की तो इस समय कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी पूरी दुनिया में कहर बरपा रही है इस दौर में भी पत्रकारिता संक्रमण से ग्रसित हैं प्रेस स्वतंत्रता पर काम करने वाली संस्था  रिपोर्ट विदाउट बॉर्डर (आर एस एफ) की रिपोर्ट के अनुसार विश्व प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स में भारत 142बे  स्थान पर है यह रैंक पिछले साल से 2 स्थान नीचे है जिस तरह से सांप्रदायिकता और अंधभक्ति  मीडिया के घरानों के चलन में है यह उसी का नतीजा है 

 

और इसी से मिलता जुलता वर्तमान स्वरूप और सरकार का रवैया भी है सत्य तो यह है कि सरकार पर प्रशासन पर पत्रकार सवाल उठाता है जो बेहद जरूरी भी है लेकिन सवाल उठाने से ही पत्रकारिता और पत्रकारों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया जाता है लिहाजा पत्रकार सत्य लिखता है और इस सत्य के कटघरे में हमेशा पक्ष और विपक्ष को बराबर की आजादी देता है|

 

पर मीडिया ने किस तरीके से एक पक्ष का यशोगान किया है यह 2014 की चुनावी यात्रा से बखूबी नजर आता है स्वतंत्रता भी कब तक स्वतंत्र रहेगीआखिरकार उसे स्वतंत्र भावना से निर्देशक भी तो करना होगा |अगर मीडिया स्वतंत्रता से निष्पक्षता से निर्भीक तरीके से काम कर रही हैं तो हर एक तपके तक सूचनाओं का प्रचार प्रसार क्यों संभव नहीं जनसमस्याओं का प्रसारण मीडिया चैनल्स या मीडिया लेखन में क्यों नहीं है। 

 

लॉक डाउन  मे अर्थव्यवस्था तो चौपट हो ही रही है और जो छोटे तबके के लोग हैं गरीब, मजदूर एवं छोटे-छोटे समाचार पत्र पत्रिकाा में जो पत्रकार या प्रकाशक मंडल है उन पर जीवन मरण का संकट है  

 

कोरोना से अब तक सड़कोंं पर 34 मौतें है इनमें से 29 मजदूर है क्योंकि वे भूख प्यास से परेशान होकर पैदल घर से निकल पड़े 29 साल के रणवीर दिल्ली से मुरैना के लिए पैदल निकले थे लेकिन 200 किलोमीटर चलने के बाद आगरा में ही दम तोड़ दिया ऐसे बहुत से लोगों की रास्ते में ही मौत हो गई पर मीडिया ऐसी समस्याओं को ना दिखा कर धार्मिक मामलों पर ज्यादा ध्यान दे रहा है 

 

देश सांप्रदायिकता फैल रही है यहां सब्जी वाले से उनका धर्म जानकर सब्जी ले रहे हैं सांप्रदायिकताा चाटुकारित करने का जिम्मा मीडिया ने उठाया है जैसे जर्मनी में हिटर के शासनकाल में मीडिया ने  किया था ।

 

   जब लॉक डाउन खत्म होगा तो  स्कूल फीस बैंकों की बकाया राशि  बिजली के बिल दुकानों का किराया , हाउस टैक्स ,जीएसटी इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए पैसा कहां से आएगा इस लॉक डाउन में उद्योग ठप है  दो वक्त का खाना का इंतजाम कैसे हो इसकी चिंता देश के गरीब वर्ग मध्यमवर्ग मे व्याप्त है 

 

इतनी समस्याओं के बावजूद  कहा जा रहा हैं पीएम केयर्स में पैसा जमा करें यह देश की असली समस्याएं हैं जो आपको शायद बड़े-बड़े न्यूज़ चैनल में देखने को ना मिलेगा क्योंकि सच दबा दिया जा रहा है 

यह हालत है भारतीय मीडिया की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे पर ।

 

आप सबको प्रेस की स्वतंत्रता मुबारक हो